छात्र जीवन का परिचय


विद्यार्थी जीवन  ( छात्र अपना भविष्य निर्माण आप करें )  विद्दर्थीं जीवन, जीवन का सुनहरा काल है। Student|life is  the Golden period of life. कुछ सीखने, कुछ जानने, कुछ बनने  का सतत सार्थक प्रयास इसी समय में होता है।

 एक विद्यार्थीं के  क्या लक्षण होते हैं, वह नीचे श्लोक में दिए हुए हैं। 

 काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।  अल्पाहारी, गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्।" 

 ( १) काक ( कौआ ) चेष्टा-कौआ दूर आसमान में  स्वच्छंद उड़ान भरते हुए भी अपनी तीव्र दृष्टि द्वारा जमीन पर  पड़े किसी खाद्य पदार्थ को देख चपलतापूर्वक वहाँ पहँच जाता  है तथा अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार विद्यार्थी भी  ज्ञान की प्राप्ति हेतु तीव्र जिज्ञासा रखे तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त  चले।  करता  

( २ ) वकोध्यानम्-बगुला तालाब या नदी के किनारे एक  पैर पर खड़ा रहकर ध्यान मग्न रहता है। मछली
आने पर तुरंत उन्हें अपना ग्रास बनाकर पुन: ध्यानस्थ हो जाता है। विद्यार्थी भी विद्या अध्ययन में लगा रहे तथा ज्ञान-विज्ञान की बातों को ग्रहण करते हुए निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ता रहे। ( ३) श्वान ( कुत्ता ) निद्रा-जैसे सोए हुए कुत्ते के पास से धीरे-से गुजरने पर भी वह जं जाता है, उसी प्रकार विद्याथींी भी अपने जीवन-लक्ष्य को प्राप्त करने में सदैव सावधान व जागरूक रहे। उसकी नींद सात्विक है।

४ ) अल्पाहारी- विद्यार्थी जीवन साधना एवं तपस्या का जीवन है। एक अध्ययनशील विद्यर्थी सदा सादा-सात्विक तथा अल्प भोजन लेने वाला होता है। तामसिक, राजसिक तथा अधिक आहार वाले विद्यार्थी की जीवनी-शक्ति का बडा भाग भोजन पचाने में, नींद, आलस्य तथा तन-मन की बीमारियों का सामना करने में खरच हो जाता है। विद्यर्थी जीवन की सफलता के लिए स्वास्थ्य के प्राकृतिक नियमों का पालन अति आवश्यक है। ( ५ ) गृहत्यागी-एक आदर्श विद्यर्थीं विद्यर्जन हेतु गृह- त्याग में संतोष करता। विद्या प्राप्त करना तप करने जैसा है, न कि मौज-मस्ती करना। सुखों का त्याग आवश्यक है। एक लड़का सड़क के लैंप के सहारे पढ़ रहा था। एक परिचित ने कहा-""इतना कष्ट उठाने से तो नौकरी कर लो।' विद्यार्थी बोला-" महोदय! आप नहीं जानते, यह मेरी साधना का, कसौटी का समय है। कठिनाई है तो क्या, बौद्धिक क्षमताएँ अब न बढ़ाई गईं तो फिर ऐसा अवसर कब मिलेगा?"’ इस तरह का उत्तर देने वाले महान शिक्षा शास्त्री ईश्वरचंद्र विद्यासागर थे। प्रत्येक छात्र को यह अनुभव करना चाहिए कि वह एक ऐसी अवधि में होकर गुजर रहा है, जो उसके भाग्य और भविष्य निर्माण करने की निर्णायक भूमिका अदा करेगी। व्यक्ति की सारी गरिमा उसके गुण-कर्म-स्वभाव पर निर्भर है। क्या बाह्य क्या आंतरिक दोनों ही क्ेरं की प्रगति इस बात पर निर्भर है कि किसी का व्यक्तित्व किस स्तर का है। धन, विद्या, सम्मान, पद, स्वास्थ्यं, मिन्रता सिरफ उन्हीं को मिलती है, जिन्होंने अपना व्यक्तित्व, गुण, कर्म, स्वभाव सही ढंग से ढाला और विनिर्मित किया है। इन्हीं दिनों श्रेष्ठ विचार, सद्भावनाओं एवं सत्प्रवृत्तियों का अभ्यास किया जाता रहे तो उसका प्रभाव जीवनभर बना रहता है और सुख-शांति की संभावनाएँ साकार होती हैं। इन्हीं दिनों में जोश अधिक होश कम रहने के कारण अवांछनीय प्रवृत्तियों में अध्धिक आकर्षण-मनोरंजन महसूस होता है और मनोवृत्तियँ पानी की तरह नीचे की ओर शीघ्र ही गिर जाती हैं और जीवनभर पीछा नहीं छोड़तीं। कहना न होगा कि ऐसा व्यक्ति शोक-संताप भरी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता हुआ अभिशाप जैसा नारकीय जीवन जीता है।
 इन्हीं दिनों मित्रों का आकर्षण अपनी चरमसीमा पर रहता है। अच्छे साथी मिले तो विकास एवं प्रसन्नता की वृदध में सहायता ही मिलती है। हर समझदार छात्र का कर्तव्य है कि मित्रता से पूर्व हजार बार सोचे। कहीं मित्रता के बहाने उसे आवारागर्दी की ओर तो घसीटा नहीं जा रहा है, जिससे वे शिक्षा से वंचित रह जाएँ स्वास्थ्य खो दें, स्वभाव बिगाड़ लें और सम्मान तथा विश्वास गँवा बैठें। कुसंग से बहुत सावधान रहें। सच्चरित्र मित्रो, श्रेठ पुस्तकों और सर्वशक्तिमान परमात्मा का ही संग करें। सद्विचारों की नोटबुक बनाएँ। जब भी कोई अच्छी बात पढें, सुनें तो नोट करें। समय- समय पर दोहराएँ। आदर्श व्यक्तियों का, महापुरुषों का ध्यान व उनके चरित्र का चिंतन-मनन करें।1
 एरिस्ट्रायस की धार्मिक विषयों में बड़ी रुचिं थी, अतएव उसके आग्रह पर उसके पिता ने उसे जीनो की पाठशाला भेज दिया। जब वह लौटा, तो पिता ने पूछा-""वहाँ क्या सीखा?"' उसने उत्तर दिया-"'बाद में ज्ञात हो जाएगा।"’ एक दिन किसी बात पर रुष्ट होकर पिता ने उसे खूब पीटा। उसने कोई प्रतिवाद नहीं किया, न कोई उत्तर दिया। पिटने के बाद फिर से दत्तचित्त हो अपने काम में लग गया। न आत्महत्या की धमकी दी, न घर से भागने की। पिता का हृदय भर आया। उसने पुत्र से क्षमा माँगी, तब पुत्र एरिट्रायस ने कहा-"पिताजी। मुझे मेरे गुरु ने नैतिकता, सदाचार, सहिष्णुता और ध्येय-निष्ठा सिखाई है। मैंने उसी का पालन किया।"" पिता का हृदय ऐसे शिक्षक के प्रति कृतज्ञता से भर गया
स्वास्थ्य संरक्षण के लिए यही समय सबसे अधिक उपयुक्त है। प्राकृतिक नियमों, आहार-विहार, सोने-जागने आदि का यदि ठीक ध्यान रखा जाए तो तंुरुस्ती ऐसी बन जाएगी जो जीवनभर साथ दे। स्वास्थ्य जीवन की सबसे पहली आवश्यकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन का आनंद ले सकता है, त्याग, तपस्या, मेहनत कर सकता है। इन दिनों ब्रह्मचर्य और सद्विचारों के 'बारे में पूरी सतर्कता रखी जाए और अश्लील परिस्थिति से ऐसे बचा जाए जैसे साँप, बिच्छू, आंग, जहर से बचा जाता है। गंदी फिल्म, गंदे गाने, गंदे उपन्यास, गंदे चित्र, गंदे विचार घिनौने कार्यों की प्रेरणा देते हैं और शरीर और मस्तिष्क को खोखला कर देते हैं।
 साहस अच्छा गुण है। अनीति का प्रतिरोध करने की हिम्मत भी होनी चाहिए। सृजन और विकास की संभावनाएँ सज्नोचित प्रवृत्तियों में सन्निहित हैं। अवज्ञा, उच्छूंखलता, अशिष्टता अनुशासनहीनता, मर्यादाओं एवं नागरिक कर्त्व्यों का उल्लंघन साहसिकता की भयंकर विकृतियँ हैं, जिससे दूसरों को चोट तो पहँचती ही है, अपना स्वभाव भी निकृष्ट बन जाता है। अधिकतर अकुशल छात्र ही अनुशासनहीन हुआ करते हैं। पढ़ने-लिखने में उनका मन नहीं लगता। अच्छे विद्यार्थी के लक्षणों से रहित होने से गुरुजनों के प्रति श्रद्धा नहीं होती। श्रेणी, श्रेय अथवा सराहना के योग्य नहीं होते। आगामी जीवन के उत्तरदायित्व से अनविज्ञ रहते हैं, जीवन का कोई विशेष लक्ष्य नहीं होता। इसी प्रकार की मानसिक शून्यताओं से जन्मी हीनभावना को दबाने के लिए अकुशल एवं अयोग्य छात्र अनुशासनहीनता को शान समझने लगते हैं। ऐसे विद्यार्थीं विद्या प्राप्त करने के लिए विद्यालयों महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में पढ़ने नहीं आते, बल्कि कॉलेज जीवन की फैशन-परस्ती में अपना जीवन तथा अभिभावकों का पैसा बरबांद करने के लिए आया करते हैं। जिन विद्यार्थियों के
लक्षण पढ़ने के होते हैं, वे पढ़ाई के सिवाय 'बेकार की खुराफातों में नहीं पड़ते।
 पिता इतना गरीब था कि बचे की फीस चुकाना भी मुश्किल और लड़का इतना लगनशील और परिश्रमी कि स्कूल में पढ़ने के साथ उसने क्लरक की नौकरी भी कर ली। प्रतिमाह सात रुपए बचाया भी। टोरंटो (कनाडा) के नाई परिवार में जन्मा टाक्सन नामक यही लड़का अपनी लगन, दृढ़ निश्चय और परिश्रम के कारण १२८ समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं, १५ रेडियो व टेलीविजन स्टेशनों, १५० व्यापारिक तकनीकी पत्रिकाओं, दो प्रकाशन संस्थाओं दो यात्रा ऐजेंसियों का मालिक बना।
 आत्मनिर्भरता, दूसरों की सहायता, धर्म का सदुपयोग, समय का सुनियोजन एवं सदुपयोग, मानसिक संतुलन, सत्साहित्य का स्वाध्याय, कठिन परिश्रम, दृढ़ संकल्प, स्वच्छता, सुव्यवस्था, सुसंगति सकारात्मक विचार, स्वस्थ जीवन, शालीनता, सज्जनता, हंसमुख, शिष्ट एवं विनम्र व्यवहार युवावस्था को अलंकृत करने वाले सद्गुण हैं। अर्थ उपार्जन का अभ्यास नवयुवक यदि करने लगें तो उनके भीतर ऐसी विशेषताएँ उगती चली जाएँगी, जिनके द्वारा उनका भविष्य स्वर्णिम और शानदार बन जाएगा। ""


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