इंसान गलत काम क्यू करता है?
क्या सही है और क्या गलत ये जानते हुए भी लोग गलत काम क्यों करते हैं?
फायदा वादी दृष्टिकोण, स्वार्थ ,लालच , अभिलाषा
ऊपर दिए गए चार बातें ऐसी है जिसके कारण व्यक्ति पूर्णतया आत्म केंद्रित हो जाता है वह खुद का फायदा किस चीज में है वही देखता है और इसलिए उसको अगर गलत बात करनी हो तो वह हिचकी चाहता नहीं है।
आपने सही प्रश्न किया की लोग और व्यक्ति गलत किया है वह जानने के बावजूद भी गलत काम करते ही है इसके लिए जवाबदार कौन हो सकता है?
क्या हम ?
क्या समाज ?
क्या राजनेता ?
क्या कायदा कानून या फिर बंधारण?
क्या माता पिता??
क्या शिक्षक?
क्या स्कूल या फिर यूनिवर्सिटी ?
क्या परिस्थिति?
क्या देश का भाग्य या फिर हमारा भाग्य??
ऐसे कई सारे प्रश्न आपको मिलेंगे जिनका शायद आप उत्तर दे पाओ और अगर उत्तर दे पाओ तो चर्चा और आगे बढ़ते ही जाएगी और उसका शायद अंत भी ना हो क्योंकि हम न्यूज़ में हर रोज इस विषय में चर्चा तो देखते ही है लेकिन उसका कोई मतलब नहीं होता वह सिर्फ टाइम पास करने के लिए ही होता है उससे हमें कोई समाधान , शांति या फिर कोई जवाब नहीं मिलता ।
इसके लिए हमें क्या करना चाहिए इसके बारे में गीता में कहा गया है कि कर्मण्येवाधिकारस्ते हमें हमारा कोई भी कर्म हमारा कर्तव्य है यह समझकर करना चाहिए ना कि हमारा हमारी फरज, हमारा हक , हमारा अधिकार । इस बात को भूलकर कोई भी कार्य मेरा कर्तव्य है ऐसा सोच कर हमें करना चाहिए। तभी हम कोई भी कार्य श्रेष्ठ तरीके से कर पाएंगे ।
गलत और सही की परिभाषा तो तब समझ मेंं आती है जब उसका अनुसरण किया जाए। बात ये है कि सही क्या है और गलत क्या है जानते.हुए भी लोग गलत इसलिए करते हैं कयोंकी उस समय होश नही रहता। हर आदमी को मालूम है कि रेप करना बहुत गलत है ,बल्कि गुनाह है ,फिर भी लोग कर रहे हैं। कयोंकि उस समय आदमी हवस मेंं अंधा रहता है। उसको सिर्फ लगता है कि जो लड़की उसको मिल नही सकती उसका रेप ही कर देना चाहिए। और आदमी ऐसी जघन्य घटना को अंजाम दे देता है।
एक औरत को ये बात भी मालूम रहती है कि अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द से फिजिकल रिलेशन बनाना गलत है। पर वो उस आदमी के साथ बंध चुकी होती है। उस औरत को उस आदमी का सेक्स पंसद आ जाता है। हवस कि सीमा जब चरम पे पहुंच जाती है तब इंसान सही और गलत भूल जाता है। ऐसा ही एक आदमी के साथ भी होता है। वो भी तब जानता है कि गलत क्या है,फिर भी अपनी पत्नी से छुपके ऐसा करता है। एक बात और बता दूं की इल्लीगल चीज तब तक इल्लीगल नही होती जब तक किसी को पता ना चले। सब लोग जो गलत करते हैं,वो भी यही सोचते हैं। फिर जब उस इंसान का भेद खुलता है तब इस बात का और अच्छे से एहसास होता है कि उसने जो किया वो गलत था।
जानबूझकर लोग ऐसे काम करते है।आजकल बहुत कम लोग अनपढ़ है और जो पढ़े लिखे है उनको तो सही और गलत का पता है ।कितना भी ग्वार अनपढ़ आदमी हो उसकी भी अंतरात्मा बता देती है कि ये काम गलत है फिर भी वो किसी लालच या मस्ती के लिए किया जाता है।दूसरा गलत करने के पीछे डर ना होना।गलत करने की सजा अगर भयंकर हो तो गलत करने से पहले उसकी रूह कांप जाएगी अगर उस काम की सजा खतरनाक और कोई बचाने वाला ना हो।परन्तु लचर कानून व्यवस्था और पैसे के बल पर कोई सजा ना होने से जुर्म और गलती बढ़ जाती है।आपने गलत किया आपको सजा बहुत कम या फिर होगी नही तो कल में भी गलत करने के लिए तैयार हो जाऊँगा।इसलिए अच्छे काम की प्रंशसा जरूर करे और गलत काम की भयंकर सजा का प्रावधान रखे।गलतियां बहुत कम होगी
जिस प्रकार हमारा शरीर आदतों का अभ्यस्त होता है वैसे ही हमारा मन भी उन्हीं आदतों का अभ्यस्त हो जाता है।
आपने कभी अपनी दिनचर्या पर गौर किया। एक बार ध्यान से देखें और विचार करें हम सुबह से शाम तक के रोज के छोटे छोटे कामों को भी एक निश्चित pattern से करते हैं। आप टूथपेस्ट करते हैं आप जिस तरह नहाते हैं या जिस तरह आप खाना खाते हैं आपका शरीर इन सबका अभ्यस्त है। आपको कोई विशेष तरह से दिमाग नहीं लगाना पड़ता। आपके रोज के steps भी लगभग वही होंगे जो आप रोज करते हैं। आपके खाने का तरीका, आपके चलने का तरीका, आपके व्यवहार करने का तरीका हर दिन लगभग वही होता है जिनकी आपको आदत है।
हमारे शरीर का हमारे मन पर बड़ा प्रभाव होता है। कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है। उसी तरह हमारा शरीर भी जिन आदतों का अभ्यस्त होता है उनकी छाप निरंतर हमारे मन पर पड़ती है। हमारा मन भी उन्हीं आदतों का अभ्यस्त हो जाता है।
ज्यादातर लोग अपनी आदतों के वशीभूत होते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जो अपनी आदतों पर नियंत्रण रख पाते हैं। कई बार यह जानते हुए की कोई काम गलत है फिर भी हम अपनी आदतों के इसी अभ्यास के कारण उसे छोड़ नहीं पाते हैं।
शिक्षा-संस्कार से प्राप्त जानकारी यानी सूचनात्मक ज्ञान, मन के चेतन हिस्से के स्मृति-आलय में संचित होता है।
जीवन अवचेतन मन की प्रवृत्तियों, वासनाओं, कल्पनाओं, महत्वाकांक्षाओं और नैसर्गिक जैविक इच्छाओं से संचालित होता है।
चेतन मन केवल सतह पर 12 प्रतिशत, अवचेतन मन गहराई में 88 प्रतिशत हिस्सा है।
इसलिए शिक्षा-संस्कृति के ऊपर अशिक्षित-असभ्य प्रकृति विजय हासिल कर लेती है।
प्रत्येक ब्यक्ति को मां के गर्भ में ही शरीर , मस्तिष्क एवं आत्मा तीनों अविकसित अवस्था में पैदा होती हैं।
धीरे-धीरे शारीरिक विकास के साथ-साथ मस्तिष्क एवं आत्मा का विकास भी होता रहता है।लगभग 21 बर्ष तक करीब करीब पूरा हो जाता है। इसीलिए 21- 25 बर्ष के बाद शादी करने की आजादी होती है।
प्रत्येक नार्मल ब्यक्ति उचित निर्णय लेने की क्षमता रखता है पर कभी कभी भावावेश में आकर गलत निर्णय ले लेता है।
अतः यदि ब्यक्ति संतुलन बनाए रख के निर्णय लेता है तब परिणाम सदैव उचित होगा पर यदि भावावेश या लालच के वशीभूत होकर निर्णय लेगा तब अनुचित परिणाम भुगतने को बाध्य होगा
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